Monday 7 January 2013


भारत में फिज़िक्स  की स्थिति


पिछली सदी में भारत ने फिज़िक्स के क्षेत्र में काफी बड़े नाम पैदा किये हैं . जिन में मुख्य रूप से सत्येंदर  नाथ बोस और नोबल पुरस्कार विजेता चंदर शेखर वेंकट रमण के नाम लिए जा सकते हैं. भारत ने कुछ अन्तराष्ट्रीय स्तर के  संस्थान बनाने में भी सफलता पाई है.इन में इंडियन इंस्टीचयुट ऑफ़ साइन्स बंग लौर (IISC)  टाटा  इंस्टीचयुट ऑफ़  फनंडामेंटल सर्च  (TIFR) के नाम मुख्य हैं. अच्छे  संस्थान बनाने में हमारे पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु और होमो जहाँगीर भाभा  का भी काफी योगदान रहा है.
आज जब हमारा देश -१० % की दर पर उन्नति कर रहा है भारत सरकार भी विज्ञान के क्षेत्र में धन का निवेश करने के बारे में काफी जागरूक नजर रही है.हालाँकि अभी भी वह इस मामले में बाकि देशों से पीछे है. उदहारण  के लिए हम आज भी जी दी पी का १५ ही खर्च कर रहे हैं जबकि चीन .  और विकसित देश से  % तक खर्च करते हैं.
भारत ने अल अच् सी (LHC) में भागेदारी कर के वियान के क्षेत्र को काफी लाईमलाईट में लाया है. अभी हमारा देश टेस्ट  फ्यूजन रीयक्टर  और एंटी प्रोटोन और अयोन रीसर्च में हिस्सा लेने के बारे में भी विचार कर रहे हैं. ये केंद्र फ़्रांस और जर्मनी में बनाये जा रहे हैंकुछ और प्रोजेकट  जो की विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में उतेजना पैदा कर रहे हैं उनमे मुख्य रूप से ३० मीटर टेलीस्कोप और वर्गीय किलो मीटर अरे  हैं.   कुछ दुसरे प्रो जेकट जो इस वैज्ञानिक उतेजना को बढ़ाने में सहयोग दे रहे हैं उनमें अमेरेका स्थित लेजर इंटरफेरोमिटर ग्रेवीटेशनल वेव ऑब्जरवेटरी का अप ग्रेड  जिसे लीगो के नाम से जाना जाता है का एक मुख्य हिस्सा है. इस प्रो ग्राम  में भारतीय ११ संस्थानों के हिस्सा लेने की आशा बंध रही है और अगली पञ्चवर्षीया  योजना जो की  मार्च २०१२ में शुरू  हो रही है.   हम भारतियों के लिए इस तरह से अंतर राष्ट्रया स्तर पर इस तरह के बड़े प्रोज्र्क्टों के लिए चुना जाना या विचार किया जाना काफी सम्मानजनक स्थिति है. ये सब विज्ञान के क्षेत्र  में किये जा रहे वैज्ञानिकों के कामों से ही संभव हुआ है.  
भारत में हुए बड़े प्रोजकटों में  मुंबई पूना हाईवे  से दिखने वाले ३० घुमाई जा सकने वाले ४५ मीटर डिश अन्टीना आकार के रेडिओ टे ली स्कोप (GMRT) , हिमालय में बन रहे   मेजर वायुमंडलीय  शेरनकोव  एक्सपरिमेंट   के लिए २१ मीटर कोस्मिक रे टेलीस्कोप , चंदरयान  जो किकुछसालपहलेएकअमेरिकीरोकेटकेसाथभेजागयाथा .

"आस्ट्रोसैट" (मल्टीवेवलेंग्थमीशन ,भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह जो की अगली साल छोड़ा जायेगा  ), एक पेटावाट(1012W) लेजर जिसे हैदराबाद मेंलगाये जाने का विचार है. एक और बड़ा विज्ञान प्रोजेक्ट "न्यूट्रिनोवेधशाला" जो की एकभूमिगत प्रयोगशाला होगी का काम भी अगले साल शुरू होने की उम्मीद है.
आजकल बहुत सारी छोटी प्रयोगशालाएं भी कई तरह की उच्चस्टार के उपकरण ला रही है जैसे की उच्चशक्ति की लेजर , एटोमिकफ़ोर्स माइक्रोस्कोप, और त्वरक केंद्र . इन्ही छोटी प्रयोगशालों की वजह से ही भारतीय वैज्ञानिकों में अंतरराष्ट्रीयस्तर के बड़े प्रोजेक्टों में हिस्सा लेने का होंसला पैदा हुआ हैपरन्तु हमें ये नहीं भूलना चाहिए की कल के वैज्ञानिकों को ट्रेन करने में बड़े महंगे उपकरणों के अलावा उन प्रयोगों का भी काफी योगदान होता है जिन्हें हम टेबलटॉप एक्सपेरिमेंट कहते हैं और उन में किसी तरह के उपकरणों की जरुरत नहीं होती.
मेरे अनुसार वैज्ञानिक तैयार करना जो की इस तरह के बड़े प्रोजेक्टों में हिस्साले सकें और उच्च शिक्षा में अपना योगदान दें सकें, आज का सब से मुश्किल काम है. आज हमें ऐसे लोगो की जरुरत है जो इन बड़े प्रोजेक्टों में नेतृत्व प्रदान कर सकें क्यों कि पैसे का प्रबंध कर ना या होना आजकल इतना मुश्किल नहीं रह गया है.
हमारे देश की जनसँख्या जिसे हम कई बार बोझ समझते हैं आज हमारी सबसे बड़ी ताकत नजर आती है.अगले दस सालों में इसीलिए भारत सरकार नें स्नातक कक्षाओं में छात्रों की संख्या बढ़ने के लिए जो की अभी नौ में एक है को तीन में एक करने का लक्ष्य निर्धारित किया हैसमाज के पिछड़े लोगों तक शिक्षा के लिए पहुँच बढ़ाने के लिए नई नीतियाँ भी लागू करनें की शुरुआत की है.एक एसटीमेट के अनुसार यदि हमनें लोगों की शिक्षा की मांग को पूरा करना हो तो हर महीने ८ से 10 विश्वविद्यालय खुलने चाहिये जो की लगभग असंभव है .
कई नए शिक्षा संस्थान खोले जा रहे हैं जैसे की आई आई टी. जिनकी संख्या जल्दी ही१६तक पहुंचनें वाली है.आई आईटी के बारे में तो कहा जाता है की वहां प्रवेश पाना दुनिया के पहले औ रदुसरे क्रम के विश्वविद्यालयों या संश्थानों में प्रवेश पाने से भी मुश्किलहैआई आई एस ई आर नाम के नई तरह के विश्वविदालयों ने
भी काम करना शुरू कर दिया है .ये विश्वविद्यालय नए कांसेप्ट के साथ स्थापित किये गए हैं जिनमें शोध और शिक्षा साथ साथ हो सके.
पिछले कई सालों से ज्यादातर अच्छे छात्र शैक्षिक क्षेत्र को चुननें के बजाये इन्फोर्मेशनटेक्नोलोजी ,वित्त , मैनेजमेंट या इंजिनीयरिंग को चुनते आर हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में वे २ से दस गुना तक ज्यादा कम लेते हैंफिजिक्श में भी थेओरिशट एक्सपेरिमेंटलिष्टों से कहीं ज्यादा हैं जिस की वजह पहले फंड्ज की कमी रही है.
भारत सरकार का विज्ञान में छात्र को आकर्षित करनें का एक और इनीशिअटिव इंस्पायर (इन्नोवेशन इन साइंस परस्युट फॉर इंस्पारड रीसर्च ) है. इसके तहत १००००विद्यार्थियों को स्नातक औरपोस्टग्रेजुअट स्तर तक छात्रवृत्याँ बांटी जाती हैंअच्छी बात ये है की इन छात्रवृतियों को लेने वाले ज्यादातर छात्र गावों की पृष्ठ्भूमीं के हैं.छात्रों को अच्छी वैज्ञानिक शिक्षा देने के लिए टी आई ऍफ़ आर (TIFR) नें अंडरग्रेजुएट स्तर भी लेना शुरू कर दिया है. कई लोग कहते हैं कि विज्ञान में नौकरियां कहाँ है लेकिन जानकारों का मानना है के अच्छे वैज्ञानिकों के लिए ढेर सारी नौकरियां हैं. उदहारण के लिए आइ आइ टी में नए संस्थानों कि वजह से २५००शिक्षकों के पद खाली हैं.अच्छे छात्रों और अध्यापकों कि कमी को पूरा करनें के लिए और कालेज और विश्वविद्यालय खोलने की जरुरत है. कुछ साल पहले सरकार ने प्रसाशकीय ,उद्योगों और शैक्षिक नौकरियों के बीच वैतनिक फर्क कम करने के लिए शिक्षकों के वेतन में भी बढ़ोतरी की है. इसके साथ साथ और भी कई तरह के उपाए सरकार द्वारा शैक्षिक क्षेत्र को आकर्षक बनाने के लिए किये जा रहे हैं.
हालांकि कई युएस / युके के कई नामी विश्वविद्यालय भारत में अपने सस्थानों की शाखाएं खोलने को बेताब हैं. लेकिन उनका उद्देश्य केवल छात्र जुटाना ही है .इससे बेहतर तो यह है कि भारतीय और उन संस्थानों के बीच कोई गठजोड़ हो जिससे उनके साथ-साथ हमें भी फायदा हो. छात्रों कि बढती संख्या से निबटने के लिए इंटरनेट और अच्छे प्राध्यापकों की  नियुक्ति परमानेंट आधार पर या कुछ थोड़े समय के लिए कि जानी चाहिए .
अंत में मैं ये ही कहना चाहूँगा कि इस१२१करोड़ के देश के लिए जितना भी किया जाये कम है.
(The material for this article has been mainly drawn  from Physics world and published in HIMRASHMI MAGAZINE of Govt. College Sanjauli (2011-12))

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